बिहार में शराबबंदी एक बार फिर सुर्खियों में है। चुनावी माहौल गरमा चुका है और इस बीच शराबबंदी कानून को लेकर सियासी हलचल तेज़ हो गई है। सालों पहले लागू की गई इस नीति को लेकर अब जनता, विपक्ष और सरकार तीनों अलग-अलग राय पेश कर रहे हैं। गांवों से लेकर शहरों तक चर्चा है कि क्या सरकार अपने फैसले पर कायम रहेगी या फिर बदलते राजनीतिक समीकरणों के बीच शराब की बिक्री को आंशिक रूप से फिर से शुरू किया जाएगा। विपक्ष इसे राजस्व और रोज़गार से जुड़ा मुद्दा बता रहा है, तो वहीं सरकार इसे महिलाओं की सुरक्षा और सामाजिक सुधार का कदम मान रही है। इसी टकराव और सवालों के बीच यह बहस बिहार की राजनीति का सबसे बड़ा चुनावी एजेंडा बनती जा रही है।
शराबबंदी का सरकार का पक्ष
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साफ कहा है कि शराबबंदी “औरतों की आवाज़” पर लागू की गई थी और इसे हटाना उनके साथ किया गया वादा तोड़ने जैसा होगा। सरकार का दावा है कि शराबबंदी से घरेलू हिंसा में कमी आई है, गरीब परिवारों में रोटी और बच्चों की पढ़ाई पर पैसा खर्च होने लगा है। साथ ही महिलाओं की स्थिति मज़बूत हुई है।
जमीनी हकीकत
गांवों और कस्बों में लोग सवाल उठाते हैं कि अगर शराबबंदी पूरी तरह लागू है तो हर हफ़्ते नकली शराब से मौतें क्यों हो रही हैं? क्यों हर मोहल्ले में आसानी से शराब की बोतल मिल जाती है? विपक्ष लगातार आरोप लगाता रहा है कि यह कानून गरीब और मज़दूर वर्ग पर सख़्ती दिखाता है, जबकि तस्कर और मिलावटखोर पुलिस की मिलीभगत से फायदा उठा रहे हैं।
महिला शक्ति का दबाव
बिहार की महिलाओं ने शराबबंदी का खुलकर समर्थन किया है। उनके लिए यह सिर्फ शराब का मुद्दा नहीं बल्कि घर की सुरक्षा और बच्चों की पढ़ाई का सवाल है। लेकिन अब कई महिलाएं कह रही हैं कि “अगर कानून रहेगा तो ईमानदारी से लागू होना चाहिए, वरना यह सिर्फ गरीबों को जेल भेजने का तरीका बन गया है।”
चुनावी मौसम में शराब की राजनीति
जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव करीब आ रहे हैं, विपक्ष ने शराबबंदी को चुनावी मुद्दा बना दिया है। कुछ दल दावा कर रहे हैं कि अगर वे सत्ता में आए तो ताड़ी और शराब पर फिर से आंशिक छूट दी जाएगी। लेकिन अभी जनता भी अब दो खेमों में बंट गई है। एक वर्ग चाहता है कि शराबबंदी बनी रहे, लेकिन सख्ती से और बिना भेदभाव के और दूसरा वर्ग मानता है कि जब शराब चोरी-छिपे बिक ही रही है, तो बेहतर है कि इसे सरकार की निगरानी में खुले तौर पर बेचा जाए।
हालिया अपडेट और नई सख्ती
बिहार पुलिस ने शराब तस्करी, ड्रग्स और साइबर क्राइम पर नज़र रखने के लिए विशेष यूनिट बनाई है।
बॉर्डर पर चेकिंग तेज़ की गई है, ताकि यूपी और अन्य राज्यों से शराब की एंट्री रोकी जा सके।
हाल ही में कई जिलों में हज़ारों लीटर शराब ज़ब्त कर नष्ट की गई।
फिर भी सबसे बड़ा सवाल वही है, क्या ये कदम असली बदलाव लाएंगे या यह सिर्फ चुनावी मौसम का “पब्लिक शो” है?
डिस्क्लेमर: यह लेख केवल जनहित में जानकारी देने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसका मकसद किसी भी राजनीतिक दल या नीति का समर्थन या विरोध करना नहीं है।